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पेट्रोलियम गुड्स की पूरे देश में एकसमान कीमत रखने की दिशा में एक अहम कदम उठाया गया है। राज्य नैचरल गैस पर वैल्यू ऐडेड टैक्स रेट 5% तक रखने और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में इनपुट के रूप में इस्तेमाल होने वाले पेट्रोल, डीजल जैसे दूसरे ईंधनों पर वैट रेट घटाने पर राजी हो गए हैं। राज्यों में इसकी रूपरेखा बन जाने के बाद जीएसटी काउंसिल इस स्कीम पर विचार करेगी। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया, 'काउंसिल इस प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय करेगी। आधिकारिक स्तर पर केंद्र और राज्यों के बीच चर्चा हुई है।' इससे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कुछ कमी आएगी। खासतौर पर उन राज्यों में यह कमी आएगी, जहां ज्यादा टैक्स वसूला जाता है।


काउंसिल ने इससे पहले इस मुद्दे पर विचार किया था और तय किया गया था कि राज्य इस बारे में एक स्कीम बनाएं। एक अन्य सरकारी अधिकारी ने कहा कि मामला अब राज्यों के पाले में है और उन्हें ही स्कीम बनाकर काउंसिल के सामने रखना है। केंद्र पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स को जीएसटी के दायरे में लाना चाहता था, लेकिन इस सेक्टर से राजस्व का बड़ा हिस्सा हासिल करने वाले राज्यों ने इस कदम का समर्थन नहीं किया था। अगर राज्यों ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी तो यह इन पेट्रो प्रॉडक्ट्स पर एक समान टैक्स रेट तय करने की दिशा में अहम कदम होगा।

पेट्रोलियम मिनिस्टर धर्मेंद्र प्रधान ने पेट्रो प्रॉडक्ट्स को जीएसटी के दायरे में लाने की वकालत बुधवार को की थी। उन्होंने कहा था, 'जीएसटी काउंसिल को पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स को जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार करना चाहिए।' आधिकारिक स्तर पर हुई चर्चा में नैचरल गैस पर वैट रेट को 5% तक रखने और पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स पर इसे घटाकर वाजिब लेवल पर लाने की सहमति बनी थी ताकि फर्टिलाइजर और स्टील सेक्टरों की इंडस्ट्रियल यूनिट्स की कारोबारी सेहत पर बुरा असर न पड़े।

पहले प्रस्ताव दिया गया था कि सेंट्रल सेल्स टैक्स में बदलाव कर यह पक्का किया जाए कि जीएसटी के दायरे में ली गईं वस्तुओं की उत्पादन लागत बहुत ज्यादा न बढ़े। अब जिसे सी फॉर्म के नाम से जाना जाता है, उसके तहत मैन्युफैक्चरर्स सुविधा नहीं ले सकते हैं। इस फॉर्म के तहत वे किसी दूसरे राज्य से पेट्रो प्रॉडक्ट्स लेते थे, तो उस पर वहां लगने वाला वैट चुकाने के बजाय 2 पर्सेंट सेंट्रल सेल्स टैक्स देते थे।


अब उन्हें वैट चुकाकर पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स खरीदना होगा, जिसकी दरें 15 पर्सेंट से 30 पर्सेंट के बीच हैं। यह मैन्युफैक्चरर्स पर एक तरह से दोहरी मार है क्योंकि उन्हें न केवल ज्यादा टैक्स देना होगा, बल्कि वे पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स पर चुकाए गए इन करों पर जीएसटी सिस्टम के तहत इनपुट टैक्स क्रेडिट भी क्लेम नहीं कर सकेंगे। इतना ही नहीं, कुछ राज्यों ने अपने यहां लाए जाने वाले पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स पर एंट्री टैक्स भी लगा दिया है। राज्य नहीं चाहते हैं कि मैन्युफैक्चरर्स 2% की रियायती दर पर पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स इंपोर्ट करें क्योंकि इससे राजस्व का नुकसान होगा। राज्यों को डर है कि ऐसे में तो सभी मैन्युफैक्चरर्स दूसरे राज्यों से पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स खरीदने लगेंगे और लोकल वैट नहीं देंगे।

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