जैन साधुओं को संपत्ति का मोह नहीं होना चाहिए। मुंबई शहर के बोरीवली दौलत नगर के 40 साल पुराने जैन स्थानक पर एक जैन संत यह कह कर पूर्ण कब्जा कर ताला लगा बैठे हैं ये उपाश्रय मेरे दादा गुरुदेव की निश्रा में बना है इसलिए इस पर मेरा हक है। उन्होंने ट्रस्ट के संविधान में स्थानिक लोगों को हटाकर अपने लोगों को ट्रस्टी बना दिया है। स्थानिक जैन श्रावकों एवं श्राविकाओं को वहां पर धर्म विधि करने पर रोक लगा दी है। क्या यह पापकृत्य नही हैं?
ट्रस्ट के संविधान में किए गए फेरबदलो के कारण कानून और पुलिस भी स्थानिक जैन श्रावकों की मदद नहीं कर पा रही है। स्थानकवासी संघ जहां पिछले 40 सालों से सामायिक प्रतिक्रमण एवं धार्मिक आराधना करता आया है उस जगह से उनको वंचित कर दिया गया है। श्रावक संघ कमजोर हो गए हैं। समाज व संतों में ऐसी कोई केंद्रीय व्यवस्था का अभाव है जिससे ऐसे समाजविरोधी आचरणों पर रोक लगाई जा सके। समय रहते जैन समाज में ऐसी व्यवस्था का निर्माण नहीं किया तो जिस तरह एक पाखंडी की वजह से डेरा सभ्यता बदनाम हुई वैसी नौबत जैन समाज पर भी आ सकती है।
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