
सचिन पायलट को जो लोग समूचे राजस्थान का नेता का मान बैठे है, वे ज़रा अपना राजनीतिक ज्ञान सुधार लें| और वे भी अपनी राजनीतिक समझ का स्तर जरा ऊँचा कर लें, जो अशोक गहलोत को कांग्रेस में ज्यादा जिम्मेदारियों के साथ नई दिल्ली में बिठाने को उनका फिर राजस्थान न लौटने का प्रमाणपत्र मान बैठे हैं। दरअसल, सचिन पायलट की पहली और आखरी राजनीतिक योग्यता सिर्फ और सिर्फ यही है कि वे राजेश पायलट की संतान हैं। सचिन इस विधानसभा चुनाव के बाद खुद को अगले मुख्यमंत्री के रूप में अभी से प्रोजेक्ट करवा रहे हैं लेकिन यह मुहिम चलाने वालों को भी पता है कि सचिन के नाम के साथ अगर पायलट नहीं लिखा होता तो कांग्रेस में उनकी जगह कहां होती? अतः इस सच्चाई को स्वीकार करने में किसी को कोई हर्ज नहीं होना चाहिए कि ना तो सचिन पायलट पूरे राजस्थान के नेता है और ना ही पूरी कांग्रेस के नेता। वे सिर्फ प्रदेश एक सामान्य से प्रदेश अध्यक्ष है और उतने ही बड़े नेता है, जितने बड़े इस पद के उनके पूर्वज डॉ चंद्रभान और बीड़ी कल्ला पद पर रहने के दौरान थे और पद से हटने के बाद है।
और रही बात अशोक गहलोत की, तो वे दिल्ली जाकर कांग्रेस में और ताकतवर हुए है। फिर गहलोत कोई पहली बार दिल्ली नहीं गए है और ना ही दिल्ली से वे वापस राजस्थान नहीं लौटे हैं। वे इससे पहले भी केंद्र में उपमंत्री, राज्यमंत्री और कांग्रेस के महामंत्री रहे है। और हर बार वहीं से राजस्थान आ-आकर कांग्रेस और राजस्थान की बागडोर सम्हालते रहे हैं। साथ ही वे जब-जब लौटे है तो पहले से ज्यादा ताकतवर होकर लौटे हैं। पिछले दिनों जब अशोक गहलोत मिले तो उनसे अपना पहला सवाल ही यह था कि अब तो दिल्ली में काम बहुत है, सो वहीं रहना होगा। तो उन्होंने एक झटके में ऐसी सारी अटकलों पर विराम लगा दिया। गहलोत ने याद दिलाया कि पिछली बार भी तो दिल्ली में महामंत्री पद से ही तो वे मुख्यमंत्री बनकर राजस्थान आए थे। असल मायने में गहलोत अपनी हर जिम्मेदारी समर्पित होकर निभाते है लेकिन यह भी सच है कि उनके लिए राजस्थान की जनता से मिलने वाला प्यार से बड़ा कोई पद नहीं है। इसलिए उनकी सक्रियता का सबसे बड़ा मैदान तो राजस्थान ही रहेगा। फिर, वे निर्विवाद रूप से राजस्थान के किसी भी नेता के मुकाबले चार गुना बड़े कद के नेता तो हैं ही और यह सच भी सुनने में किसी को बुरा नहीं लगना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी में तो राजस्थान में उनकी बराबरी का कद पाने के लिए पायलट तो क्या किसी को भी कुछ और जनम लेने पडेंगे।
फिर भी जो लोग गेहलोत और पायलट की ताकत को बराबर साबित करने पर तुले हुए है, वे कम से कम इतिहास तो जान लें। अशोक गहलोत इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सहित नरसिम्हा राव की तीन सरकारों में चार बार मंत्री, पांच बार सांसद, चार बार विधायक, तीन बार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष, दो बार पूरे कार्यकाल तक मुख्यमंत्री के रूप में काम करते हुए राजस्थान के करोड़ों लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं। अशोक गहलोत कांग्रेस में इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी और सोनिया गांधी के साथ काम करते हुए अब राहुल गांधी तक के साथ कांग्रेस को मजबूत बनाने का काम कर रहे है। यह पीढ़ियों के बीच फासले का तालमेल बिठाना बहुत मुश्किल काम होता है लेकिन गहलोत को तो आसान काम रास ही कहाँ आते है| फिर, नरेंद्र मोदी और अमित शाह को अंगूठा बताकर राजस्थान में कांग्रेस की सरकार लाना ना तो आसान काम नहीं है और ना ही सचिन पायलट के बस की बात। इसलिए पायलट को अपनी सलाह है कि वे अपने कद के मुताबिक राजनीति करें और कर सकते हो तो कांग्रेस को मजबूत करें। क्योंकि लग तो यही रहा है कि गहलोत को गच्चा देने की फिराक में पायलट कहीं पटखनी ना कहा जाएं!
निरंजन परिहार (लेखक राजनितिक विशेषज्ञ हैं)
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