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भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयीजी एम्स अस्पताल में भर्ती हैं और हर कोई उन्होंने स्वस्थ होने की कामना कर रहा है| वाजपेयीजी सिर्फ भारतीय राजनेता ही नहीं थे, बल्कि वे एक साहित्यकार, कवि, पत्रकार और कुशल वक्ता भी रहे और उनकी भाषण शैली के विरोधी भी प्रशंसक थे| उनके जीवन में कई ऐसी घटनाएं रही हैं, जो उन्हें एक राजनेता के अलावा एक महान शख्सियत बनाती हैं...

एक स्वतंत्रता सेनानी भी: वे सिर्फ एक राजनेता ही नहीं बल्कि उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी अहम भूमिका भी निभाई थी| वे पढ़ाई बीच में ही छोड़कर पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो गए| साल 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में उन्हें 23 दिन के लिए जेल भी जाना पड़ा था|

हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा... ये पंक्तियां अटलजी की है और उन्होंने इन पंक्तियों को असल जिंदगी में भी उतारा| दरअसल साल 1955 में पहली बार उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा मगर वो हार गए| उसके बाद साल 1957 में उन्होंने बलरामपुर, लखनऊ और मथुरा से चुनाव लड़ा और लखनऊ और मथुरा से तो वो हार गए लेकिन बलरामपुर से उन्हें जीत हासिल हुई| उसके बाद वो तीन बार देश के प्रधानमंत्री भी बने|

हिंदी में भाषण बना यादगार: साल 1977 में जब देश में मोरारजी देसाई की सरकार थी तो वाजपेयीजी दो साल तक देश के पहले गैर-कांग्रेसी विदेश मंत्री बने| इस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर पूरे देश को गर्व करने का मौका दिया|

81 मंत्रियों के साथ चलाई सरकार: वे कई बार देश के प्रधानमंत्री बने और एक बार 15 दिन में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा| उसके बाद साल 1998 से 2004 तक वाजपेयीजी देश के प्रधानमंत्री रहे| इस दौरान उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से बनी सरकार का कुशलतापूर्वक नेतृत्व किया| इस सरकार में कुल 81 मंत्री थे|

दुनिया में बजाया भारत का डंका: जब अमेरिका जैसे देश भारत का विरोध कर रहे थे, ऐसे में बिना हिचक के वाजपेयीजी ने बेहद साहसिक कदम उठाया| यह कदम था साल 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण करवाना| यह परीक्षण करवाकर उन्होंने दुनिया को बता दिया कि भारत अब किसी से डरने वाला नहीं है|

मशहूर कवि भी रहे: वैसे तो वाजपेयीजी बतौर राजनेता जितने मशहूर हैं, उतने ही मशहूर कवि और साहित्यकार के तौर पर भी हैं|

विरोधियों की भी की तारीफ: साल 1971 में वाजपेयीजी विपक्ष के नेता थे और इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं| उस दौरान वाजपेयीजी ने विपक्ष के नेता के तौर पर एक कदम आगे जाते हुए इंदिराजी को 'दुर्गा' करार दिया| वाजपेयीजी ने यह शब्‍द इंदिराजी के लिए उस समय प्रयोग किए जब भारत को पाकिस्‍तान पर 1971 की लड़ाई में एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई थी|

अपने फैसलों पर थे अडिग: विचारधारा के प्रति निष्ठा और कई कड़े कदम उठाने के लिए विख्यात वाजपेयीजी को भारत व पाकिस्तान के मतभेदों को दूर करने की दिशा में प्रभावी पहल करने का श्रेय दिया जाता है| इन्हीं कदमों के कारण ही वह भाजपा के राष्ट्रवादी राजनीतिक एजेंडे से परे जाकर एक व्यापक फलक के राजनेता के रूप में जाने जाते हैं|

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