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दुनिया को अलविदा करते-करते महानता और मानवता की प्रतिमूर्ति स्थापित करने वाले श्री नारायणजी को सादर श्रद्धांजली



कोरोना काल में स्थितियां सचमुच बहुत कठिन हो चली हैं। प्रतिदिन अच्छे-बुरे अनुभवों से सामना हो रहा है| जहाँ स्थिति खराब है, वहीं परिस्थितियाँ भी प्रतिकूल बन गई है। परिवारिक स्वजन, मित्र, परिजन, अपने-पराये सभी लाचार हैं| कुछ अपने अब हमारे साथ कभी नही होंगे और जो साथ हैं, वें आस-पास होकर भी दूर हैं। अंतिम विदाई में शव को चार कंधे नहीं मिल रहे है। वक्ता, लेखक सभी निशब्द हैं... क्या लिखे और कितना लिखे? लेकिन ऐसे संघर्ष ही हमें प्रेरणा भी देते हैं| भले ही सोश्यल मिडिया कोरोना, श्रद्धांजली संदेश, बेड, ऑक्सीजन और दवाइयों की कमी सहित सरकार की उपलब्धियां और नाकामियां गिनाती हो लेकिन यही सोश्यल मिडिया नदी किनारे की ठंडी बयार की तरह कुछ प्रेरणात्मक शख्सियत से भी मिलवाता है| एक इंसान अपने जीवन में महान कब बनता है? शायद तब, जब वो कोई महान या बड़ा कार्य करता है। हालाँकि याद रखना जरुरी है कि तारीफ हमेशा इंसान के काम की होती है, न कि इंसान की। दुनिया को अलविदा करते-करते महानता और मानवता की प्रतिमूर्ति श्री नारायण भाऊरावजी को अंतिम विदाई देते हुए नमन|

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