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मौत से प्यार नहीं, जीव हत्या तो हमारा स्वाद है!

बकरे का, तीतर का, मुर्गे का, हलाल का, बिना हलाल का, ताजा बच्चे का, भुना हुआ,छोटी मछली, बड़ी मछली, हल्की आंच पर सिका हुआ, न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के, क्योंकि मौत किसी और की और स्वाद हमारा।

स्वाद से कारोबार बन गई मौत, मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स नाम “पालन” और मक़सद “हत्या”, स्लाटर हाउस तक खोल दिये, वो भी ऑफिशियल, गली-गली में खुले नानवेज रेस्टॉरेंट मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है| जो हमारी तरह बोल नही सकते, अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं, उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया? कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं? या उनकी आहें नहीं निकलतीं?

डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना, किसी की आहें मत लेना, किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए। बच्चों में झूठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हड्डी दिखाई नहीं देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक माँ रही होगी, जिसे काटा गया होगा, जो कराहा होगा, जो तड़पा होगा, जिसकी आहें भी निकली होंगी, जिसने बद्दुआ भी दी होगी।

क्या तुम ये तो नहीं मान बैठे कि भगवान तुम इंसानों द्वारा की गई रचना है?

कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे? क्या मूक जानवर उस परम पिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं? क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है?

आज कोरोना वायरस उन जानवरों के लिए ईश्वर के अवतार से कम नहीं है।

भगवत गीता के चतुर्थ अध्याय के सातवें और आठवें श्लोक में भगवान ने स्वयं अवतार का प्रयोजन बताते हुए कहा है। जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का उत्थान होता है, तब दुष्टों के विनाश के लिए मैं विभिन्न युगों में, माया का आश्रय लेकर उत्पन्न होता हूं। इसके अलावा भागवत महापुराण में भी कहा गया है कि भगवान तो प्रकृति संबंधी वृद्धि-विनाश आदि से परे अचिन्त्य, अनन्त, निर्गुण हैं तो अगर वे इन अवतार रूप में अपनी लीला को प्रकट नहीं करते तो जीव उनके अशेष गुणों को कैसे समझते? अतः प्रेरणा देने और मानव कल्याण के लिए उन्होंने अवतार रूप में अपने आप को प्रकट किया। जब से इस वायरस का कहर बरपा है, जानवर स्वच्छंद घूम रहे है। पक्षी चहचहा रहे हैं। उन्हें पहली बार इस धरती पर अपना भी कुछ अधिकार सा नज़र आया है। पेड़-पौधे ऐसे लहलहा रहे हैं, जैसे उन्हें नई जिंदगी मिली हो। धरती को भी जैसे सांस लेना आसान हो गया हो। सृष्टि के निर्माता द्वारा रचित करोड़ो-करोड़ योनियों में से एक कोरोना ने तुम्हे तुम्हारी औकात बता दी। घर में घुसकर मारा तुम्हे, और तुम उसका कुछ नही बिगाड़ सकते। अब घंटियां बजा रहे हो, इबादत कर रहे हो, प्रेयर कर रहे हो और भीख मांग रहे हो उससे की हमें बचा ले। धर्म की आड़ में उस परम पिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो, कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो।

कभी सोचा...! ईश्वर का भोजन और स्वाद क्या है?

किसे ठग रहे हो? भगवान को? अल्लाह को? या खुद को? कहते हो कि मंगलवार को नानवेज नहीं खाता..., आज शनिवार है इसलिए नहीं..., अभी रोज़े चल रहे हैं..., नौ दुर्गों में तो सवाल ही नही उठता…!

झूठ पर झूठ… झूठ पर झूठ... झूठ पर झूठ...!

फिर कुतर्क सुनो...! फल-सब्जीयों में भी तो जान होती है…? तो सुनो फल-सब्जियाँ संसर्ग नहीं करती, ना ही वो किसी प्राण को जन्मती हैं। इसीलिए उनका भोजन उचित है। ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हें ही दी है ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म-मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया। आज जब कोरोना के रूप में मौत हमारे सामने खड़ी है तो घरों में दुबकना क्यों? डरना क्यों? हम तो भगवान के रचयता है? आगे बढ़ो? क्यों रुके हो? मौत से प्यार है ना? मौत तो स्वाद है ना?

तुम्ही कहते थे ना कि हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमे लौटाएगी। मौते दीं है प्रकृति को तो मौतें ही लौट रही हैं। ईश्वर का संकेत है प्रकृति के साथ रहो, उसी के होकर रहो... वर्ना पहले भी ईश्वर ने अपने द्वारा बनाई कई योनियो को धरती से हमेशा के लिए विलुपत किया है और उन्हें पुनः ऐसा करने में एक क्षण भी नही लगेगा।

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