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कर्नाटक/ गोडवाड ज्योती:
दिनांक 24/06/18 को भारतीय विधानसभा रेसकोर्स रोड स्थित स्वदेशी संघ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में नेशनलिज्म यानि राष्ट्रवाद पर वक्तव्य रखा गया था| संपूर्ण जैन समाज के लिए यह गौरव का विषय है कि भारतीय दिग्गजों के मध्य आचार्यश्री नयचंद्रसागरजी म.सा. के शिष्य युवा शतावधानी अभिनंदन सागरजी म.सा. के शिष्य ट्विन्स बालमुनी नमिचंद्र सागरजी म.सा. व नेमिचंद्र सागरजी म.सा. को इतने गहरे विषय पर वक्तव्य देने का विशेष आमंत्रण मिला| इस कार्यक्रम में बालमुनियों के साथ बीजेपी कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस श्रीमान येदियुरप्पा, श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के (SPMRF) के डायरेक्टर अनिर्बान गांगुली, जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र से जुड़े इतिहास के विशेषज्ञ सुशिल कुमार पंडित, RSS के दत्ताजी होसबोले, बीजेपी प्रवक्‍ता संबित पात्रा, टीवी ऐक्टर और फिल्म और टेलीविजन इंस्टीट्यूट के पूर्व चेयरपर्सन गजेन्द्र चौहान ने भी अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया| 

ट्विन्स बालमुनी नमिचंद्र सागरजी म.सा. व नेमिचंद्र सागरजी म.सा. ने 10 मिनट तक लगातार धुआंधार राष्ट्रवाद पर प्रवचन दिया| उस समय उपस्थित महानुभाव एवं सभाजन राष्ट्रवाद पर अद्भुत प्रवचन सुनकर प्रभावित हो गये और संपूर्ण परिसर तालियों की गडगडाहट से गुंजायमान हो गया| बालमुनी ने अपने प्रवचन में बताया कि जब मैं यहाँ आ रहा था, तब किसी ने पूछा कि क्या आप स्पिरिच्युल लीडर हो और जैन संत हो तो यहाँ कैसे आये? तब मैंने कहा कि भाई! जब राष्ट्र बचेगा, तभी तो धर्म बचेगा इसलिए मैं यहाँ आया हूँ| उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति विदेश से आये लोगों को टूरिस्ट नहीं मानती, बल्कि ‘अतिथि देवो भव’ कहकर सम्मान करती है| ज्ञात हो कि इससे पूर्व ट्विन्स बालमुनी नमिचंद्र सागरजी म.सा. व नेमिचंद्र सागरजी म.सा. ने पक्खी सूत्र के 350 श्लोक (गाथा) सिर्फ 2:45 घंटे में कंठस्थ करके एक नया वर्ल्ड रिकॉर्ड प्रस्थापित किया था|

क्या होता है शतावधान:

आत्मा आध्यात्मिक शक्तिओ का स्तोत्र है| अध्यात्मिक विकास यात्रा में साधक कई सिद्धियों प्राप्त करता है| ‘शतावधान’ उन्ही सिद्धियों में से एक है| अवधान केवल यादशक्ति को तीव्र बनाने की क्रिया ही नहीं अपितु आत्मा की सर्वशक्तियों का व्याप बढ़ाने की प्रक्रिया है| शत-अवधान (शत यानी 100/100 और अवधान अर्थात याद रखना) का अर्थ है, एक ही समय पर 100 भिन्न गतिविधियों, बातों या चीजों पर ध्यान केन्द्रित करना| यह स्थिति जो व्यक्ति प्राप्त करते है उन्हें ‘शतावधानी’ कहते है| शतावधानी 100 व्यक्तियों द्वारा बोली गई, दिखाई गई, चीजें, बातें कोई भी क्रम में याद रख सकते है| जैन धार्मिक परंपरा अनुसार शतावधानी की स्थिति को प्राप्त करने के लिए कठिन तप, त्याग, संयम और ध्यान का आचरण (पालन) करना पड़ता है| इसी वजह से अंगुली पर गिन सके उतने ही शतावधानी नाम इतिहास में पाए गए है| आधुनिक विज्ञान के मुताबिक सामान्य मनुष्य अपनी मानसिक शक्ति में से सिर्फ 5% से 10% शक्ति का उपयोग कर पाता है| जबकि शत-अवधानी पूर्ण एकाग्र ध्यान केन्द्रित कर अपनी मानसिक शक्ति का वस्तुतः उपयोग कर सकते है| कई ऐसे सिद्धिवंत आत्माएं भी है, जिन्होंने महत्तम उच्च शक्तियों को प्राप्त करने के लिए अपनी सिद्धियों का प्रयोग सामान्य मनुष्यों के सामने नहीं किया है| शतावधानी की इस स्थिति को प्राप्त करने वाले युवामुनि पूज्य अजितचंद्र सागरजी म.सा. इस शक्ति की विकास यात्रा में पांच गुना आगे बढ़ गए हैं अर्थात ये अब ‘अर्धसहस्त्रावधानी’ बन गए है यानि 500 अवधान में किसी भी क्रम में पूछे गये 500 प्रश्नों के उत्तर वे एक समय पर दे सकते हैं|

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