मातुश्री पुष्पाबाई कांतीलालजी कोठारी को समर्पित मातृ-पितृ वंदना कार्यक्रम श्री नाकोड़ा भैरव धाम में संपन्न
मुंबई: ‘दास्तान मेरे लाड़-प्यार की, एक हस्ती के गिर्द घूमती है, प्यार जन्नत से इसलिए है मुझे क्योंकि ये मेरी माँ के क़दम चूमती है|’ मां की ममता न तो जात को जानती है और न अमीर-गरीब के अंतर को पहचानती है। मां रूपी भगवान के प्रतिबिंब का अहसास और अनूमोदन करने हेतु वडगांव निवासी कोठारी परिवार द्वारा मातृ-पितृ वंदना कार्यक्रम का आयोजन श्री नाकोड़ा भैरव धाम-पालघर में प. पु. जाप-ध्यान-निष्ठ, महामंगलिक सम्राट, जन-जन के आस्था के केंद्र राष्ट्रसंत आचार्यश्री चंद्राननसागर सूरीश्वरजी म.सा. एवं विदुषी साध्वीश्री कल्पिता श्रीजी म.सा., साध्वी चारुता श्रीजी म.सा. (बेन म.सा.) आदि ठाणा की निश्रा में किया गया| मातुश्री श्रीमती पुष्पाबाई कांतीलालजी कोठारी को समर्पित मातृ-पितृ वंदना का भावनात्मक कार्यक्रम सुप्रसिद्ध संगीतकार जितेन्द्रजी कोठ़ारी (कोठारी ग्रुप) एवं स्वरकोकिला रागेश्री जीनवाला की जुगल जोड़ी ने हमेशा की तरह एक से बढ़कर एक सुमधुर गीत गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया| मंचसारथी ललितजी परमार की ओजस्वी आवाज के संचालन ने माता-महात्मा-परमात्मा की निश्रा में उपस्थित श्रोताओं को कभी भावविभोर किया तो कभी उनकी आंखे नम कर दी।
इस अवसर पर पुष्पाबाई कोठारी के सुपुत्र उत्तमजी ने अपने ह्रदय उदगार प्रकट करते हुए कहा कि मुझे मंच पर बोलना नही आता लेकिन मां के लिए इतना जरुर कह सकता हूँ कि परमेश्वर की निश्छल भक्ति का अर्थ माँ है। ईश्वर का रूप कैसा है, यह माँ का रूप देखकर जाना जा सकता है। सारे संसार का प्रेम माँ रूपी शब्द में व्यक्त कर सकते हैं। मैंने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया था इसलिए पिता के कभी गंभीर, कभी हँसमुख, मन ही मन स्थिति को समझकर पारिवारिक संकटों से जूझने पिता की कल्पना मैं नहीं है लेकिन मेरी मां ने माता-पिता दोनों का दायित्व निभाया| मेरी बड़ी मां-काकी ने भी मेरे लालन-पालन और संस्कार सिंचन में अपने ममत्व का सिंचन किया| मैं स्वयं को खुशनसीब मानता हूँ कि ऐसे अनंत उपकारी परिवार में मेरा जन्म हुआ|
मातृ-पितृ वंदना के इस महिमामयी कार्यक्रम में पुत्रवधू वीणा कोठारी भी स्वयं के मन पर नियन्त्रण नही कर पाई और भरे गले से भावविभोर होते हुए अपनी संवेदनाओं को प्रकट करते हुए कहा आज से 27 वर्ष पहले मैं विवाह करके ससुराल आई थी| मुझे पता ही नही चला कि कब ससुराल मेरा घर बन गया और मेरी सास मेरी मां| न जाने कितने कवियों, साहित्यकारों ने माँ के लिए न जाने कितना लिखा होगा लेकिन माँ के मन की विशालता, अंतःकरण की करुणा मापना आसान नहीं है। माँ शब्द इस जगत का सबसे सुंदर शब्द है। इसमें वात्सल्य, माया, अपनापन, स्नेह, आकाश के समान विशाल मन, सागर समान अंतःकरण सब समाया है| ऐसा नही है कि इतने वर्षो में कभी हमारे बीच मनमुटाव नही हुआ लेकिन हमारा रिश्ता उन सभी से उभरकर मजबूत हुआ है| मेरी सासु मां ने मुझे बहु नही बल्कि हमेशा अपनी छठी बेटी समझा| माता-पिता की सेवा और उनकी आज्ञा पालन से बढ़कर कोई धर्म नही है। खुशकिस्मत सिर्फ वो नही, जिनके मां होती है बल्कि खुशकिस्मत वो बहुएं है, जिन्हें सास के रूप में मां मिलती है|
तत्पश्चात कोठारी परिवार ने मातुश्री के दूध से चरणों का पक्षाल किया और बच्चों ने आरती उतारकर उनका आशीर्वाद लिया| साथ ही पधारे हुए सभी पारिवारिक जनों व शुभचिंतको ने माला व शॉल से उनका अभिनंदन किया| पंच कल्याणक महापूजा व संध्या आरती के साथ संपूर्ण दिवस के कार्यक्रम का समापन कर मन में उल्लास व उत्साह सहित कई यादों को संजोकर सपरिवार घर की ओर प्रस्थान किया|
No comments:
Post a Comment