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प्रसिद्ध कथक नृत्यकार पंडित बिरजू महाराजजी नही रहे...! आज उनके पोते स्वरांश मिश्रा द्वारा सोशल मिडिया के माध्यम से प्राप्त जानकारी ने सुबह के सूरज को भी अंधकारमय कर दिया| संगीत कला में कत्थक के लिए समर्पित एक ऐसा सितारा, जिसने चाँद को धूमिल कर दिया क्योंकि आज तबले पर ताल की थाप और पैरों में घुंघरुओं की रुनझुन को विराम लग गया है| पिछले आठ दशकों से कत्थक का पर्याय कहे जाने वाले पंडित बिरजू महाराजजी का संसार को अलविदा कहना ना केवल नृत्यप्रेमियों के लिए बल्कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के लिए भी एक अपूर्णीय क्षति है|
                                 कहते हैं कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य की प्रमुख आठ शैलियाँ हैं, जिनमें कत्थक, भरतनाट्यम, कत्थकली, मणिपुरी, ओडिसी, कुचीपुड़ी, सत्रीया एवं मोहिनीअट्टम सम्मिलित हैं। शास्त्रीय नृत्यों में तांडव (शिव) और लास्य (पार्वती) दो भाव नृत्य हैं यानि भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में सबसे पुराना नृत्य कत्थक है| कत्थक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है कहानी सुनाने वाला| बसंतपंचमी के दिन चार फरवरी 1938 को जन्में बिरजू महाराजजी सुर-ताल-लय को नृत्यकला के माध्यम से एकाकार कर प्रेम का महारास रचने में पारंगत थे| जब उनके पैर थिरकते थे तो कलाप्रेमी दर्शक दीर्घा मग्न हो जाती थी, विभोर हो जाती थी| स्वयं पंडितजी खो जाते थे.... तब उनके नयनों की भाव-भंगिमायें, उँगलियों में थिरकन, कमर का लचकना और पैरों में बिजली-सी चपलता और सबसे विशेष बात तब ना कोई पंडितजी होते थे, ना कोई तबलावादक या अन्य कलाकार, ना कोई घुंघरु, ना कोई दर्शक दीर्घा और ना ही कोई मंच! ये सब ‘एकाकार होकर निराकार’ बन जाते थे और गूंजती थी केवल नृत्यकला! पुरुष होकर भी उनके पैरों की थिरकन और कथक की अदा और नजाकत सदियों-सदियों तक गूंजती रहेगी|  
बिरजू महाराजजी को तबला, पखावज, नाल, सितार आदि कई वाद्ययंत्रों पर भी महारत हासिल थी| वो बहुत अच्छे गायक, कवि व चित्रकार भी थे| बिरजू महाराज का ठुमरी, दादरा, भजन व ग़ज़ल गायकी में भी कोई जवाब नहीं था| कथक को अधिक लोग सीख पाएं, इस उद्देश्य से पंडितजी कलाश्रम नाम से कथक केंद्र की स्थापना की| भारतीय शास्त्रीय नृत्य के प्रतीक, जो हज़ारों लोगों के मार्गदर्शक और दुनिया भर में लाखों-करोड़ो लोगों की प्रेरणा रहेंगे| सभी के लिए प्रेरणास्रोत और प्रेरक कथा बन चुके कथक सिरमौर पंडितजी का व्यक्तित्व उनकी सादगी, उनकी विनम्रता, उनकी उदारता को दर्शायेगा| मैं अधिक तो कुछ कह नही सकती क्योंकि चाँद सबका होता है पर दूर रहता है और मेरे लिए भी वो चाँद की ही भांति थे किन्तु ऐसे महान कलाकार के प्रति मेरी शब्दरूपी सुमन की हृदयानुभूत श्रद्धांजली ही मेरी अभिव्यक्ति है| बस! यह सोचकर स्वयं के मन को आश्वस्त कर सकती हूँ कि आज रात भी दूर गगन में पूनम का चाँद निखरेगा और पंडितजी उस गगन से अपनी कला की चांदनी बिखेरेंगे| भले ही अब पंडितजी के नश्वर शरीर ने हमें अलविदा कह दिया है किंतु वें भारतीय शास्त्रीय नृत्य कत्थक के रूप में सदियों हमारे साथ चिरंजीवी रहेंगे.. सदैव हमारे समीप, सदैव हमारे साथ|

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