इस एकादशी के दिन तुलसी विवाहोत्सव भी मानाया जाता है इसके संदर्भ में कथा यह है कि जलंधर नामक असुर की पत्नी वृंदा पतिव्रता स्त्री थी। इसे आशीर्वाद प्राप्त था कि जब तक उसका पतिव्रत भंग नहीं होगा उसका पति जीवित रहेगा। जलंधर पत्नी के पतिव्रत के प्रभाव से विष्णु से कई वर्षों तक युद्ध करता रहा लेकिन पराजित नहीं हुआ तब भगवान विष्णु जलंधर का वेश धारण कर वृंदा के पास गये जिसे वृंदा पहचान न सकी और उसका पतिव्रत भंग हो गया। वृंदा के पतिव्रत भंग होने पर जलंधर मारा गया। वृंदा को जब सत्य का पता चल गया कि विष्णु ने उनके साथ धोखा किया है तो उन्होंने विष्णु को श्राप दिया कि आप पत्थर का बन जाओ।
वृंदा के श्राप से विष्णु शालिग्राम के रूप में परिवर्तित हो गये। उसी समय भगवान श्री हरि वहां प्रकट हुए और कहा आपका शरीर गंडक नदी के रूप में होगा व केश तुलसी के रूप में पूजा जाएगा। आप सदा मेरे सिर पर शोभायमान रहेंगी व लक्ष्मी की भांति मेरे लिए प्रिय रहेंगी आपको विष्णुप्रिया के नाम से भी जाना जाएगा। उस दिन से मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह करवाने से कन्यादान का फल मिलता है और व्यक्ति को विष्णु भगवान की प्रसन्नता प्राप्त होती है। पद्म पुराण में तुलसी विवाह के विषय में काफी विस्तार से बताया गया है।
देवोत्थान एकादशी के दिन भीष्म पंचक व्रत भी आरम्भ किया जाता है। इस व्रत के विषय में कहा गया है कि भीष्म जब शेष शैय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा कर रहे थे तब इसी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर सहित पांचों पांडवो को भीष्म के पास ले गये थे और उनसे राज धर्म, वर्ण धर्म एवं मोक्ष धर्म का ज्ञान देने के लिए कहा था। भीष्म पितामह ने एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक पांडवों को उपदेश दिया था। उपदेश समाप्त होने पर श्रीकृष्ण ने इन पांच दिनों को व्रत के रूप में मान्यता दी। इस व्रत में चार द्वारा वाला एक मण्डप बनाया जाता है। मंडप को गाय को गोबर से लीप कर मध्य में एक वेदी का निर्माण किया जाता है। वेदी पर तिल रखकर कलश स्थापित किया जाता है। इसके बाद भगवान वासुदेव की पूजा की जाती है। इस व्रत में एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक घी के दीपक जलाए जाते हैं। इसमें व्रत करने वाले को पांच दिनों तक संयम एवं सात्विकता का पालन करते हुए यज्ञादि कर्म करना करना चाहिए। इसे श्रीकृष्ण से सभी प्रकार के पापों से मुक्त करने वाला बताया है। तीनों ही रूप में देखा जाय तो कार्तिक शुक्ल एकादशी की बडी ही मान्यता है।
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