Post Page Advertisement [Top]

वीरचंद राघवजी गांधी जैन समाज के आदर्श हैं: नित्यानन्द सूरीश्वरजी म.सा.




नई दिल्ली/ गोडवाड ज्योति: जैन संघ के परम विद्वान, हितचिंतक श्री वीरचन्द राघवजी गांधी के 154वें जन्म-जयन्ती वर्ष में उनकी आदमकद मूर्ति की स्थापना और अनावरण जैनाचार्य श्रीमद्विजय नित्यानन्द सूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा में वल्लभ स्मारक प्रांगण में किया गया। इस अवसर पर श्री सुनील सिंघी ने कहा कि ‘श्री वीरचन्द गांधी राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक हैं। उन्होंने अपने 37 साल के जीवन में बहुत से कार्य किये हैं। आठ पुस्तकों का लेखन, धर्म, काॅमर्स व रियल एस्टेट जैसे विविध विषयों पर 535 लेक्चर मामूली बात नहीं है। गच्छाधिपति नित्यानंद सूरीश्वरजी म.सा. ने कहा कि श्री वीरचंद राघव गांधी न केवल जैन समाज के बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज के गौरव पुरुष थे। महात्मा गांधी उनसे सलाह लिया करते थे। वे भारतीयता एवं जैन दर्शन के पुरोधा पुरुष थे। उनकी मूर्ति स्थापित होने से संपूर्ण जैन समाज को प्रेरणा मिलेगी। उल्लेखनीय है कि श्री वीरचन्द राघव गांधी की यह प्रथम मूर्ति है, जो कि आदमकद है और कांसे की बनी हुई है। इससे पूर्व उनकी दो मूर्तियां स्थापित हैं- एक शिकागो में व दूसरी उनके जन्मस्थान महुआ में, जो कि ‘बस्ट’ के रूप में हैं। इस मूर्ति की स्थापना का सौजन्य श्री दीपक जैन का रहा। मूर्ति स्थापना और अनावरण के इस अवसर पर देश के गणमान्य महानुभावों, बुद्धिजीवियों, उद्योग व्यापार क्षेत्र की अनेक हस्तियों ने अपनी उपस्थिति प्रदान की। श्री गांधी के परिवार से उनके पड़पौत्र श्री चन्द्रेश गांधी विशेष रूप से उपस्थित हुए। उल्लेखनीय है कि श्री दीपक जैन एवं श्री नितिन जैन करीब 6 साल से श्री वीरचन्द गांधी की प्रतिष्ठा को पुन: प्रतिष्ठित करने में लगे हुए हैं। आगामी चातुर्मास के समय ‘श्री वीरचन्द राघव गांधी जनजागरण यात्रा’ निकालने की योजना है, जो समूचे भारत में करीब बीस हजार किलोमीटर का भ्रमण करेगी।


जीवन परिचय:

श्री वीरचन्द राघव गांधी का जन्म 25 अगस्त 1864 को महुवा, गुजरात में हुआ था। पैत्रिक व्यवसाय से अलग हटकर आपने लाॅ की पढ़ाई की और बैरिस्टर के रूप में प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में अपना सक्रिय योगदान दिया और कांग्रेस के प्रथम पूना अधिवेशन में मुम्बई का प्रतिनिधित्व किया। श्री गांधी 14 भाषाओं के जानकार थे। सन् 1896-97 में जब देश में भारी अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई तो इससे निपटने के लिए उन्होंने अमेरिका से चालीस हजार रूपये और पूरा एक जहाज भरकर अनाज भारत भिजवाया। आपने श्री शत्रुंजय तीर्थ, पालीताना पर वहां के स्थानीय ठाकुर द्वारा लगाये गये तीर्थयात्रा कर को खत्म करवाया। इसी प्रकार सम्मेत शिखरजी तीर्थ पर बाॅडम नाम के अंग्रेज द्वारा सूअरों का बूचड़खाना खोलने का विरोध किया और प्रीवी काउंसिल में केस दायर कर जीत हासिल की। विश्व धर्म संसद के दौरान और उसके बाद भी आप अमेरिका में रहे। वहां आप ने 12 व्रतधारी श्रावकाचार का पूरी तरह पालन किया। आप की कठिन जीवनचर्या देखकर स्वामी विवेकानन्द भी आप की प्रशंसा करते थे। 37 वर्ष की आयु में 7 अगस्त 1901 में मुम्बई के निकट महुआर में आप का देहावसान हो गया। श्री गांधी अमेरिका की यात्रा करने वाले प्रथम जैन विद्वान और प्रथम गुजराती थे। एच. धर्मपाल, स्वामी विवेकानन्द एवं महात्मा गांधी से आपके घनिष्ठ संबंध थे।


No comments:

Post a Comment

Total Pageviews

Bottom Ad [Post Page]