*चार सालों तक डॉक्टरी सेवा देने के पश्चात घाणेराव-मालेगांव की डॉ हिना हिंगड़ 18 जुलाई को करेगी सूरत में जैन दीक्षा ग्रहण।*
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किसी के मन मे वैराग्य के भाव कब अंकुरित हो जाए ? यह कहा नही जा सकता। जैन धर्म के अंतर्गत वैराग्य के पथ पर चलना, तथा इसकी पूर्ण पालना करना सचमुच में खांडे की धार (तलवार की धार पर) पर चलने जैसा ही हैं,। इस मुश्किल डगर के बावजूद प्रतिवर्ष सैकड़ों युवक-युवतियां व छोटी-बड़ी उम्र के श्रावक- श्राविकाएं इस पथ को खुशी-खुशी चुनते हैं। इस 18 जुलाई को जो युवती दीक्षित होने जा रही हैं, वो पिछले चार वर्षों से मालेगांव महाराष्ट्रा में "अपना दवाखाना" नामक हॉस्पिटल में निस्वार्थ रूप से एक डॉक्टर के रूप में सेवाएं प्रदान करती रही हैं। मूलतया घाणेराव राजस्थान के निवासी व महाराष्ट्रा में मालेगांव जिला नासिक की प्रवासी 30 वर्षीय डॉक्टर हिना सपुत्री अशोककुमार हिंगड़ इस बुधवार 18 जुलाई को सूरत के वेसु विस्तार में स्थित विजयलक्ष्मी हॉल में श्वेताम्बर जैन धर्म के लब्दिसूरी समुदाय के आचार्य श्रीमद विजययशोवरम सूरीश्वर म, सा , वीर यश सूरी जी म,सा, भाग्ययश सूरी जी म,सा, दर्शन यश सूरी जी म,सा, भद्रबाहुविजय जी आदि म,सा एंव साध्वी वर्या वंदन माला जी म,सा, एंव विनेकमाला जी म,सा आदि साधु-भगवन्तों के पावन सानिध्य में दीक्षा ग्रहण कर संयम व समता के अद्धभुत संसार मे जा बसेगी। यह उल्लेखनीय हैं कि डॉ हिना ने महाराष्ट्रा के अहमदनगर शहर के एक कॉलेज से MBBS (गोल्ड मेडलिस्ट) की पढ़ाई कर चार वर्षों तक मालेगांव में बतौर डॉक्टर के रूप में सेवारत रही। पूर्व में तय लक्ष्य के चलते डॉ हिना के मन मे पुनः वैराग्य की भावना जाग्रत हुई। और इसी उद्देश्य से उसने जैन साधु-साध्वियों के विहार के दौरान लगभग एक हजार किलोमीटर की पदयात्रा कर अपने आप को वैराग्य की कसौटी पर कसा। जिसमें हिना ने अपने आप को इस पथ पर अग्रसर होने हेतु सक्षम पाया। हालांकि हिना के मन मे संयम पथ की औऱ अग्रसर होने के भाव तो महज 18 वर्ष की उम्र में तथा कक्षा 12 वीं में अध्ययन कर रही थी तब ही जग गए थे।कक्षा 12 वीं की पढ़ाई के पश्चात हिना ने अपने संसार पक्षीय भाई व लब्दि सूरी सम्प्रदाय में दीक्षित मुनि श्री तीर्थ यश विजय महाराज के सान्निध्य में 48 दिवसीय उपध्यान किया। इस उपध्यान के पश्चात ही हिना ने इस भौतिक संसार से मुक्त होकर संयम की राह पर चलने की ठानी। हिना के इस राह पर अग्रसर होने में अपने संसार पक्षीय भाई महाराज साहब के प्रवचनों का गहरा असर रहा हैं। हालांकि 12 वीं की पढ़ाई के दौरान हिना के मन मे जब दीक्षा के भाव जगे थे तब इस निर्णय पर उनके पिता खुश नही थे। क्योंकि वे हिना को डॉक्टर बनाना चाह रहे थे। इस लिए वह चाहते हुए भी 12 वीं की पढ़ाई पश्चात हिना दीक्षा नही ले पाई। पापा के स्वप्न को पूर्ण करने हेतु हिना डॉक्टर तो बन गई, लेकिन उसके मन मे दीक्षा लेने के भाव तो यूं के यूं बने हुए थे। मालेगांव में निवास कर रहे हमारे मित्र डॉ श्री गोकुल चोरड़िया ने बताया कि माता धनवंती एंव पिता श्री अशोक हिंगड़ की 6 बेटियों में हिना सबसे बड़ी व लाडली बेटी हैं। पिता श्री अशोक कुमार हिंगड़ का मालेगांव के तांबा कांटा के निकट नेहरू चोक में पिछली आधी सदी से भी ज्यादा पुराना साड़ी एंव सराफी का पुश्तेनी व्यवसाय हैं। जानकारी देते हुए वेसु जैन संघ के श्री श्रेणिक भाई जैन (मोंटू भाई ) ने बताया कि संयम रथ पर सवार डॉ हिना हिंगड़ की वर्षीदान यात्रा मंगलवार 17 जुलाई को प्रात 8,30 बजे वेसु स्थित सोमेश्वर सुरजमण्डल पार्श्वनाथ जिनालय से प पु गुरुदेव श्री जी के सौमेया के साथ प्रारम्भ होगी। प्रात 10,30 बजे वेसु के विजयलक्ष्मी हॉल में गुरु भगवन्तों के प्रेरक प्रवचन पश्चात दोपहर 2,30 बजे संयम वस्त्रों को केसर छांटना, सांझी-संगीत की विधि सम्पन्न होगी। तथा रात्रि में संयम सम्मान समारोह रखा गया हैं। उसके बाद 18 जुलाई को वेसु स्थित जोली रेजीडेंसी के समीप विजयलक्ष्मी हॉल में प्रात 9 बजे आचार्य श्री यशोवर्मसूरीश्वर जी आदि गुरु भगवन्तों के सान्निध्य में दीक्षा विधि प्रारम्भ होगी व डॉ हिना इस भौतिक व अंधियारे जगत को त्याग देगी तथा संयम तथा समता के अद्धभुत व अलबेले संसार मे जा बसेगी। उसके पश्चात दोपहर 1 बजे स्वामी वात्सल्य होगा। यह उल्लेखनीय हैं कि जैन धर्म मे वैराग्य का पथ बड़ा ही जटिल है। व इस पथ पर विरले ही चल पाते है। इस पथ के पथिकों के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जैसे पावन-पवित्र महाव्रतों के तहत जो अर्हताएं तथा नियम-नियमावली निश्चित है। उसमें रात्रि भोजन-पानी (तथा दवाई आदि का भी) पूर्णतया त्याग।रहने का कोई स्थाई ठौर ठिकाना नहीं। प्रतिदिन मिलों पैदल विहार। स्वयं ढोए इतने नाम मात्र के सीमित वस्त्र-पात्र आदि। तथा किसी भी तरह के बाह्य आकर्षणों से पूर्णतया तिलांजलि। परिवार, सगे-सम्बन्धी किसी के प्रति भी मोह के भाव नही। धन-सम्पदा आदि को पास में या बैंक आदि में रखना तो दूर की बात,उसे अपरिग्रह के नियमो की पालना के तहत छूना तक स्वीकार्य नही हैं। पूरे दिन आत्म कल्याण के उद्देश्य से धर्माराधना में लीन। गोचरी ( भिक्षा) के द्वारा एक नियत स्थल पर बैठ कर अपने साधु समुदाय (साधु-साध्वी पृथक रूप से) के साथ बैठ कर भोजन ग्रहण करना। किसी भी तरह की खाद्य सामग्री रखना वर्जित। जलते चूल्हे पर से व फ्रिज आदि में रखी सचित सामग्री से सीधे ग्रहण करने से पूर्ण परहेज। कच्चे पानी की बजाय पक्के पानी का उपयोग। तमाम भौतिक आकर्षणों व सुख-सुविधाओं को सर्वथा तिलांजलि। न किसी के प्रति कोई राग और न ही किसी के प्रति कोई द्वेष के भाव। बस धर्माराधना व आत्माराधना, त्याग-तपस्या आदि अनेक अर्हताएं निश्चित है। तथा अपने नेतृत्व कर्ता व धर्म गुरुओं के निर्देशानुसार अनुशासित रूप से पालना करना। सर्दी हो या गर्मी या फिर बरसात प्रतिदिन भोर के समय जग कर धर्माराधना तथा व शाम को पलेवणा व नित्य प्रतिक्रमण आदि निर्धारित क्रियाएं व धार्मिक-आध्यात्मिक विधियां की पालना। इस पथ पर चलने वालों के लिए सैकड़ों और भी पालनाएँ, अर्हताएं, नियम-नियमावली बनी हुई हैं। जो कि हमारे-आपके जैसे भौतिक संसार में रमते-खेलते-दौड़ते अपनी आजीविका कमाते लोगों के लिए एक असम्भव सी व मुश्किल सी डगर जैसी ही है। कर्मों के उदय बिना दीक्षा जैसे उच्च भावों का संसारी जीव के मन-मस्तिष्क में पनपना सम्भव नही हैं। इसके बावजूद इस पथ पर चलने वालों की कोई कमी नही। देश-विदेश में साधारण इंसान से लेकर इंजीनियरिंग, डॉक्टरी, CA, MBA, इंटीरियर आर्किटेक्ट, इवेंट, फैशन डिजायनर जैसे उच्च अध्ययन कर ऊंचे पैकेज के साथ जॉब करने वाले अनेक डिप्लोमा-डिग्री धारी, सैकड़ों-हजारों करोड़ों की धन-संपदा को तिलांजलि दे कर अनेक धन-कुबेरों ने इस पथ को स्वीकारा, व स्वीकार भी रहे हैं।
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लिपिबद्ध-गणपत भंसाली, सूरत
9426119871
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चार सालों तक डॉक्टरी सेवा देने के पश्चात घाणेराव-मालेगांव की डॉ हिना हिंगड़ 18 जुलाई को करेगी सूरत में जैन दीक्षा ग्रहण।*
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