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मुंबई/ गोडवाड ज्योती: आज बहुमुखी प्रतिभा (मल्टीटेलेंटेड) वाले लोगों का जमाना है और हम सभी इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि हर माता-पिता चाहते हैं कि शिक्षा-व्यवसाय में कामयाब होने के साथ उनकी सन्तान में कोई कला हो| हालाँकि ईश्वर सभी को किसी ना किसी कला के पुरस्कार से पुरस्कृत करके धरती पर भेजता है लेकिन उस पुरस्कार को निखारने का पुरुषार्थ हमें स्वयं करना पड़ता है| ऐसा ही निखार सबके समक्ष रखने में कामयाब हुए हैं, गोडवाड क्षेत्र के लाटारा गाँव के युवा कलाकार श्री रितेशजी चोपड़ा| भांडुप के रहने वाले श्री चोपड़ा ने 14 से 20 अगस्त तक अपनी कला ‘VIEW’ की एकल प्रदर्शनी मुंबई की काला घोडा स्थित ऐतिहासिक जहांगीर आर्ट गैलरी में लगाई थी, जिसे कलाप्रेमियों का बहुत ही अच्छा प्रतिसाद प्राप्त हुआ| इस प्रदर्शनी का शुभारंभ अहमदाबाद के मशहूर चित्रकार महेंद्रजी कडिया व राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पोट्रेट कलाकार सुरेंद्र जगताप के कर-कमलों से किया गया| इस अवसर पर कला क्षेत्र से जुड़ी अनेक हस्तियाँ उपस्थित रही|







साल 1989 में जन्मे रितेश चोपड़ा ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ Govermment Diploma in Art & Diploma in Art Education भी किया है| अन्य क्षेत्रों की तरह अगर चित्रकारी की बात करें तो भारत में कई ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अपनी चित्रकारी से सभी को अभिभूत किया है| फिर चाहे वह पिकासो कहे जाने वाले एमएफ हुसैन हों, आधुनिक चित्रकला के जनक राजा रवि वर्मा हों या फिर अमृता शेरगिल| अमूमन सभी इनकी प्रसिद्ध पेंटिग्स की चर्चा करते रहते हैं पर इनसे अलग भी कई नाम हैं, जो आमजन को प्रभावित करते हैं| ऐसा ही एक नाम रितेश भी है| रितेश ने अपनी कला को ‘VIEW’ के नाम से भांडुप उपनगर को थीम बनाकर अपनी नजरों से उकेरकर कलाप्रेमियों के मध्य प्रदर्शित करने में कामयाब रहे हैं| रितेश मानते हैं कि कला अभिव्यक्ति का नमूना है और अभिव्यक्ति को किसी दायरे में नहीं बांधा जा सकता है| फिर वह अभिव्यक्ति शब्दों में पिरोई हो चाहे रंगो में उकेरी हो| यह सारी पेंटिंग्स मेरे घर की छत व खिड़की से दिखती है और मैंने इसे ही कैनवास पर उतारने का प्रयास किया है| चित्रकला जगत में मेरा आगमन इत्तफाकन नहीं है| बचपन से ही मुझे रंग अपनी ओर आकर्षित करते थे| मैं प्रकृति को अपने बहुत नजदीक महसूस करता हूँ| मैंने एक कविता पढ़ी थी, जिसका मतलब कुछ ऐसा था कि मेरे कमरे में बस खिड़कियाँ-ही-खिड़कियाँ हैं| हर खिड़की एक मौसम की ओर खुलती हैं| किसी खिड़की से बारिश की मीठी बूंदें आती हैं तो किसी से जाड़े की कच्ची धूप भीतर झाँकती है| कभी धुंध भीतर आकर मेरा अंतर्मन भिगोती है तो कभी वसंत सौन्दर्य बिखेरता है| इसलिए मैंने अपनी खिड़की से दिखते भांडुप को कैनवास पर उतारा है| मेरे इस कार्य में मेरे परिवार के साथ-साथ मेरे मित्रगण, शुभचिंतक सभी ने बहुत सहयोग दिया है|











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