इंदौर: अहंकार शूल है और विनम्रता फूल है। हम केवल बड़े न बनें बल्कि बड़प्पन भी दिखाएं। हम कितने ही धनवान, रूपवान, ज्ञानवान, बलवान, सत्तावान क्यों न हों, जिंदगी का अंतिम परिणाम तो केवल दो मुट्ठी राख ही है, फिर हम किस बात का अहंकार करें?
यह बात जैन संत ललितप्रभसागरजी म.सा. ने महावीर बाग में आयोजित ऑनलाइन प्रवचनमाला में कही। उन्होंने कहा कि गोरा रंग दो दिन अच्छा लगता है, ज्यादा धन दो महीने अच्छा लगता है पर अच्छा व्यक्तित्व जीवन भर अच्छा लगता है। अगर हम सुंदर हैं तो इसमें खास बात नहीं है क्योंकि यह माता-पिता की देन है पर अगर हमारा जीवन सुंदर है तो समझना यह खुद की देन है। जिस्म को ज्यादा मत संवारो उसे तो मिट्टी में मिल जाना है, संवारना है तो अपनी आत्मा को संवारो क्योंकि उसे ईश्वर के घर जाना है। इस दुनिया में कुछ लोग बिना मरे मर जाते हैं पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व के चलते मरने के बाद भी अमर हो जाते हैं। भगवान राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध जैसे लोग धरती से कभी के चले गए पर उनके महान जीवन और महान विचारों की खुशबू आज भी लोगों के जीवन को सुगंधित कर रही है। औरों के दिल में जगह वैभवपूर्ण जीवन जीने से नहीं, प्रेम और त्यागपूर्ण जीवन जीने से बनती है। याद रखें, चौराहे पर एक तरफ विश्व विजेता सिकंदर की मूर्ति हो और दूसरी ओर निर्वस्त्र महावीर की मूर्ति हो पर श्रद्धा से सिर तो महावीर के चरणों में ही झुकेगा।
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