आप जब यह पढ़ रहे होंगे, तब तक राजस्थान के बारे में शुरू किए गए राजनीतिक दुष्प्रचार की पोल खुल चुकी होगी। इसे शुद्ध रूप से राजनीतिक जालसाजी ही कहा जा सकता है, क्योंकि हाथरस के वीभत्स बलात्कार कांड से योगी आदित्यनाथ बदनामी को बचाने की बदनियती के तहत राजस्थान को दुर्भाग्य के दानावल में झोंकने का अपवित्र प्रयास किया जा रहा था लेकिन राजस्थान ने समय रहते इस षडयंत्र को समझ लिया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कमान संभाली तो मामला भी संभल गया। लेकिन सोशल मीडिया व सरकारी खिलौना मीडिया में पतित प्रचार जारी है। हजार हॉर्स पॉवर वाले दिलों को भी झकझोर देने वाले हाथरस के सामूहिक बलात्कार कांड और सरकारी पुलिस द्वारा रात तीन बजे लाश का अंतिम संस्कार किए जाने की बेशर्मी की तुलना राजस्थान की घटना से किए जाने के कुत्सित प्रयास को जनता समझ गई। तस्वीर साफ है कि राजस्थान के राजनैतिक दुश्मनों का दुष्प्रचार चरम पर है। राजस्थान की 7 करोड़ जनता सहित मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी इसीलिए इसके विरोध में है।
मुख्यमंत्री गहलोत ने एक पर एक लगातार तीन ट्वीट करते हुए साफ कहा कि हाथरस में हुई घटना बेहद निंदनीय है। उसकी जितनी निंदा की जाए, कम है। लेकिन दुर्भाग्य से राजस्थान के बारां में हुई घटना की तुलना हाथरस के जघन्य बलात्कार कांड घटना से की जा रही है। जबकि बारां में बालिकाओं ने स्वयं मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए 164 के तहत दिए बयानों में अपने साथ ज्यादती नहीं होने एवं स्वयं की मर्जी से लड़कों के साथ घूमने जाने की बात कही है। बालिकाओं का मेडिकल करवाया गया है एवं अनुसन्धान में सामने आया कि लड़के भी नाबालिग हैं। जांच आगे भी जारी रहेगी। घटना होना एक बात है और कार्यवाही होना दूसरी। घटना हुई तो कार्यवाही भी तत्काल हुई लेकिन मीडिया का एक वर्ग और विपक्ष इस केस की हाथरस जैसी वीभत्स घटना से तुलना करके जनता को गुमराह कर रहे हैं। मुख्यमंत्री के इस बयान से सब कुछ साफ हो गया, और जनता भी पहले से ही समझ रही थी, सो राजस्थान को बदनाम करने की राजनीतिक चाल सफल नहीं हुई।
दरअसल, हाथरस को लेकर न तो सियासत थम रही है, और न ही हंगामा। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पहुंचे, तो सरकार हिरासत में ले लिए गए। कई सांसदों के साथ क्या सलूक हुआ, दुनिया ने देखा। तो मामले को मोड़ देने के लिए राजस्थान को बदनाम करने का यह षड़यंत्र रचा गया। एक सोची समझी रणनीति तहत बारां की घटना की आड़ में उत्तर प्रदेश के भगवाधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ सरकार की गलतियों को छुपाने की कोशिश की गई। पुलिस के अपराध पर परदा डालने और सरकार की इज्जत बचाने की कोशिश में राजस्थान की लाज लूटने का षड़यंत्र सजाया गया। हाथरस कांड में युवती से सामूहिक बलात्कार हुआ, जुबान काटी गई, गला घोंटा गया, नहीं मरी तो गले की हड्डियां तोड़ी गईं, चल कर घर तक न जाए इसलिए कमर तोड़ दी गई। 9 दिन की बेहोशी के बाद होश आया और दो हफ्ते में परलोक सिधार गई तो परिजनों को बिना सूचित किए ही पुलिसवालों ने रात के अंधेरे में तड़ते 3 बजे खेल में अंतिम संस्कार कर दिया। बदनाम से बचने के लिए इस हैवानियत का राजस्थान की घटना से तुलना करने का पतित प्रचार शुरू किया गया। तभी राजस्थान के राजनैतिक दुश्मनों की तरफ से षडयंत्र का संचालन शुरू हो गया। जबकि दोनों घटनाओं की कोई तुलना ही नहीं हो सकती।
सवाल ये है कि आखिर क्या हो रहा है उत्तर प्रदेश में? अगर हो रहा है, तो रुक क्यों नहीं रहा है। और रुक नहीं रहा है, तो दूसरे प्रदेशों की घटना से तुलना करके अपने अपराध कम नहीं हो जाते, यह भगवाधारी योगी महाराज को समझ में क्यों नहीं आ रहा? दरअसल, हाथरस में हैवानियत की शिकार वह युवती या बारां जिले की वे बालिकाएं यहां मूल विषय नही है। मूल विषय है हमारी राजनीति में छिपी बेशर्मी और हर घटना के जरिए अपने अपराध पर परदा डालने की वह कोशिश, जिसकी वजह से हाथरस में दुर्भाग्यवश बलात्कार से मरी और आधी रात को सरकारी साये में जला डाली गई एक अभागी युवती राजनीतिक षड़यंत्र का पात्र बना दी जाती है। इस दुर्दांत व हैवानियत भरे सामूहिक कुकर्म सहित सरकार की उसे दबाने की कोशिशों की जितनी निंदा की जाए, कम है लेकिन उससे भी ज्यादा निंदा देश इस बात की कर रहा है कि हाथरस की हैवानियत के जरिए राजस्थान को बदनाम करने का षड़यंत्र सजाया गया, जो कि सफल नहीं हो सका।
जिस तरह से हम सुनते रहे है कि अपराध और अपराधियों का कोई धर्म नहीं होता, उसी तरह से बलात्कार और बलात्कारियों का भी कोई धर्म नहीं होता। बलात्कार जघन्य अपराध है और बलात्कारी घनघोर अपराधी। लेकिन राजस्थान को बदनाम करने के लिए हाथरस की हैवानियत से सिर्फ इसलिए जोड़ दिया जाए, ताकि उत्तर प्रदेश पुलिस के बेशर्मी भरे अपराध को कम आंका जा सके, यह तो और भी जघन्य अपराध है। इसीलिए, राजस्थान के राजनैतिक विरोधियों ने यह उपक्रम शुरू किया ही था कि जनता जान गई। वैसे, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर यह पतित प्रचार अब भी जारी है। लेकिन ये पब्लिक है, सब जानती है, इतनी भी नादान नहीं है।
निरंजन परिहार (लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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