दुबई में एक करोड़ सालाना का पैकेज छोड़ राग से वैराग्य दिशा की ओर 30 वर्षीय हितेश खोना
शिवपुरी/मध्यप्रदेश: आज विश्व में जितना भी कलह एवं संघर्ष है, उसका कारण इच्छाओं की लगातार वृद्धि है| प्रत्येक मनुष्य अपने वर्तमान से असंतुष्ट है और अधिकाधिक पा लेने की होड़ में भाग रहा है| उसमें संचय की वृत्ति पनपती जा रही है| हालाँकि कुछ पुण्यात्मा मानव भव में धन संचय से अधिक धर्म संचय करने में कामयाब होती हैं और संयम मार्ग पर अग्रसर होकर स्वयं के आत्म उद्धार के साथ अन्य आत्माओं को भी कल्याण मार्ग बताते हैं ऐसे ही मेहसाणा गुजरात के हितेश खोना दुबई में एक करोड़ का पैकेज छोड़कर अब वैराग्य मार्ग पर अग्रसर होंगे। 14 जनवरी को मध्यप्रदेश के ग्वालियर स्थित शिवपुरी में होने वाली महामांगलिक के दौरान उनकी दीक्षा लेने का शुभ मुहूर्त तय करेंगे। दीक्षा मुहूर्त के लिए शिवपुरी पहुंचे हितेश ने बताया कि वे दुबई में फिलॉसफी पढ़ाते थे। कंपनी उन पर एक करोड़ रुपये प्रतिवर्ष से ज्यादा खर्च करती थी लेकिन इस सबमें जीवन का असल सुख नहीं था। उन्होंने बीकॉम के साथ मुंबई विश्वविद्यालय से फिलॉसफी में भी डिग्री हासिल की है। उन्होंने यूएई, ओमान, कतर, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में अपनी सेवाएं दी हैं। वे सात भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, बंगाली, संस्कृत, प्राकृत और गुजराती के जानकार हैं।
पिछले 5 वर्षो से आत्मसाधना में जुटे हितेश बताते हैं कि जब वह कक्षा 12 में अध्ययनरत थे तो उन्होंने आचार्य नवरत्न सागरजी के दर्शन किए। उनसे उन्हें जैन दर्शन के ग्रंथों का अध्ययन करने की प्रेरणा मिली। जब उन्होंने समरादित्य महाकथा ग्रंथ का स्वाध्याय किया तो इस ग्रंथ में क्रोध का अंत कैसे करें और बिना साधु बने सुखी नहीं हो सकते... यह पढ़कर अंदर तक तरंग उठी। तभी तय कर लिया कि भविष्य में दीक्षा लेंगे। बड़े भाई के विवाह और माता-पिता के मकान की व्यवस्था करने की वजह से वैराग्य का मार्ग अपनाने में देरी हुई। हालांकि परिजन दीक्षा लेने से मना करते रहे लेकिन हितेश का भौतिक चकाचौंध में मन नहीं लग रहा था। हितेश ने बताया कि माता-पिता कहते थे कि बड़े भाई की शादी तक दीक्षा मत लो। मैं मान गया लेकिन बड़े भाई की शादी होने के बाद भी माता-पिता ने दीक्षा लेने से मना कर दिया। अंततः अपने माता पिता को दीक्षा लेने मना ही लिया। अब 14 जनवरी को आयोजित होने वाले महा मांगलिक कार्यक्रम में पिता भागचंद और माता चंपाबेन अपने बेटे को गुरु महाराज को सौंपकर अपनी अनुमति प्रदान करेंगे।
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