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पंख उसके, आकाश उसका, जज्बा उसका... तो उसे उड़ने दीजिये!

मशहूर शायर ने पंक्तियों के माध्यम से महिलाओं को कहा था कि ‘तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था...| नारी सदा से ही शक्ति स्वरूपा और पूजनीय रही हैं| समय के साथ सबके रूप ने नारीशक्ति का परचम लहराया है| दैविक काल से त्याग, शक्ति और भक्ति आदि अनेक गुणों को धारण करने वाली देवी लक्ष्मी, पूजनीय सरस्वती और माता अन्नपूर्णा हो या सती सीता, राजुल और मीरा हो| वाचकन्वी गार्गी, सावित्री बाई फुले, रानी लक्ष्मी बाई, रज़िया सुल्तान से लेकर डॉ. लक्ष्मी सहगल व इंदिरा गाँधी, अमृता प्रीतम, कल्पना चावला व सुनीता विलियम्स तक अनेक महिलाओं ने अपनी बुद्धिकौशल का प्रदर्शन कर यह साबित किया है कि महिलायें किसी भी क्षेत्र में कार्य करने में बेहतर हैं। 

पिछले दिनों भारतीय महिला पायलट्स के एक दल ने बेहद चुनौतीपूर्ण उड़ान पूरी की| 9 जनवरी को एयर इण्डिया की उड़ान संख्या ए आई-176 ने वन्दे भारत मिशन के तहत कैप्टन ज़ोया अग्रवाल के नेतृत्व में इस फ्लाइट के क्रू में कैप्टन पापागिरी तन्मई, कैप्टन आकांक्षा और कैप्टन शिवानी शामिल थीं| यह फ्लाइट सैन फ्रांसिस्को से 16,000 किमी दूरी तय कर बेंगलुरु पहुंची| भारतीय विमान इतिहास का यह पहला अवसर है जबकि इतने लंबे व ख़तरनाक़ व चुनौतीपूर्ण रास्ते से होकर इतनी लंबी दूरी की कोई फ़्लाइट केवल महिला पायलट्स द्वारा उड़ाई गयी हो। बेशक पूरे देश को इन भारतीय महिला पायलट्स पर गर्व करना चाहिए। महिलाओं की इस अभूतपूर्व उपलब्धि के बाद एक बार फिर यह बहस छिड़ गयी है कि यदि महिलाओं को संपूर्ण स्वतंत्रता, सुरक्षा व सुविधायें उपलब्ध कराई जायें तो कई क्षेत्रों में तो यह पुरुषों से भी बेहतर भूमिका अदा कर सकती हैं।  हम आधुनिक जरूर हो गये हैं किन्तु महिलाओं के बारे में हमारी सोच कुछ ज्यादा नही बदली है और उनकी सुरक्षा तो कई मायनों में जरूरी ही नही समझी जाती| आज भी जब देश में कहीं बलात्कार या उत्पीड़न जैसी घटनायें होती हैं तो या तो उस महिला को ही दोषी करार कर दिया जाता है या फिर ‘तथाकथित महान लोगों’ (जिसमें महिलाएं भी हैं) द्वारा पीड़ित महिला को घर से बाहर ना निकलने का ‘उत्कृष्ट उपदेश’ देते हुए महिला को ही उसके साथ होने वाले हादसे का ज़िम्मेदार ठहरा दिया जाता है। महिलाओं के वास्तविक साहस को यदि देखना व समझना है तो न केवल एयर इण्डिया की चारों पायलट्स के साहस को देखा जा सकता है बल्कि राजस्थान, हरियाणा आदि के खेतों में काम करते हुए देख सकते हैं| महानगर की महिलाओं को घर का सारा काम खत्म करके व्यवसाय करते हुुयेे देख सकते हैं| महिलाओं से सीखने योग्य है कि घर, दफ्तर के बाद स्वयं के लिए भी समय निकाल लेती हैं| या यूँ कहे कि स्वयं ही अपने आसमान का निर्माण करती है और अपने पंखों से उस अनंत आकाश में विचरण करती है| जब पंख उसके, आकाश उसका, जज्बा उसका... तो हमें उसकी हिम्मत तो बढ़नी ही चाहिए| अब भी समय है, नारी नारायणी तो है ही, नारी नरोत्तम भी है| अपनी सोच बदलें और आधी आबादी का सम्मान करते हुए उसके अस्तित्व को स्वीकार करें| 

                                                                                                               गोडवाड ज्योती

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