पढ़ने की ललक ऐसी कि विवाह के 24 वर्षो बाद बगैर किसी कोचिंग कक्षाओं के स्वयं मेहनत कर 72% लाये
मुंबई/गोडवाड ज्योति: किसी ने बिलकुल सच कहा है कि आदमी को हर वक्त सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए और इंसान एक बार कुछ करने की ठान ले तो उसके लिए उम्र, जगह, परिस्थितियां कभी बाधक नहीं होती| बात कर रहे हैं गोडवाड कि राजधानी वरकाना के समीपवर्ती गाँव दादाई निवासी स्व. श्रीमान दीपचंदजी मुणोत की पौत्री व श्रीमान केवलचंदजी मुणोत की सुपुत्री हाल कांदिवली और बाली निवासी स्व. सोहनराजजी सिरोया की पौत्रवधू व श्रीमान प्रकाशजी सिरोया की पुत्रवधु श्रीमती संगीता मनीषजी सिरोया हाल परेल की, जिन्होंने अपने विवाह के 24 वर्षो पश्चात ना केवल फिर से अपनी पढ़ाई शुरू की, बल्कि बगैर किसी कोचिंग कक्षाओं के घर पर स्वयं मेहनत कर महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड ऑफ़ सेकेंडरी एंड हायर एजुकेशन बोर्ड (12th) में 72% लाकर अपने परिवार सहित पुरे गोडवाड का नाम रोशन किया है और दूसरी बहुओं के लिए प्रेरणा बनी हैं| उनकी सास विद्याजी ने कहा कि मेरी तीनों बहुओं को मैंने अपनी बेटी ही माना है| मुझे संगीता पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है कि उसने आगे पढ़ने का निर्णय लिया क्योंकि अगर बेटा शिक्षित होता है तो एक ही परिवार को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है लेकिन अगर एक बेटी शिक्षित हो जाए तो दो परिवार शिक्षा के साथ-साथ संस्कारित भी होते हैं|

बेटियों का रहन-सहन, आदत, व्यवहार, कपड़े आदि सब कुछ भावी ससुराल के हिसाब से तय किये जाते हैं... वो ससुराल जिसे लड़की तो क्या, उसके परिवार वाले भी नहीं जानते लेकिन यही सच भी है| कुछ वर्षो पीछे जाएँ तो पता चलता है कि योग्य व सक्षम परिवार मिलने पर पिता केवलचंदजी ने अपनी पुत्री के सुंदर भविष्य का निर्णय लेते हुए संगीता के विवाह का निर्णय लिया और शादी पश्चात उनकी पढ़ाई छुट गई| उसके बाद पारिवारिक जिम्मेदारियां और बच्चों का भविष्य बनाने में वर्षो निकल गये| नारी को क्या चाहिए... मुट्ठी भर आसमान, एक चुटकी धूप, अँजुरी भर हवा और थोड़ी-सी जमीन, जहाँ नारी अपने कदमों को आत्मविश्वास के साथ रख सके। बस! इसी सोच को जहन में रखकर दो वयस्क बच्चों की माँ संगीता ने ना केवल अपनी पढाई को जारी करने का निर्णय लिया, बल्कि बिना किसी कोचिंग के 72% लाकर दो कुलों का नाम रोशन किया और दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनी| इस जीत की ख़ुशी परिवार के साथ बांटते हुए संगीताजी ने कहा कि ज़ाहिर है! ज़िंदगी की मध्यवस्था में पढ़ाई करने का निर्णय लेना कई चुनौतियों को साथ लेकर आया| घर की ज़िम्मेदारी, बच्चों की पढाई, सामाजिक व पारिवारिक कार्य और इन सबके बाद फिर खुद की पढाई... सब मिलकर स्थिति को काफ़ी मुश्किल बनाते थे लेकिन परिवार के साथ ने सब मुश्किलों को कम कर दिया और आज मैंने जो सोचा, वो कर दिखाया| आज नारी सशक्त है, सबल है और साक्षर भी है|

गोडवाड ज्योति की और से संगीताजी सिरोया व उनकी जैसी नारी शक्ति की इच्छा शक्ति व दृढ़ निर्णय पर खरा उतरने के जज्बे को कोटि कोटि वंदन, अभिनंदन करते हुए आगामी शिक्षा हेतु उज्ज्वल भविष्य की शुभकामना करते हैं।
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