जिंदगी का पाठ पढ़ाने के लिए अरबपति पिता ने इकलौते बेटे को बना दिया मजदूर
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
बाप 6000 करोड़ की कंपनी का मालिक, 71 देशों में हीरे का कारोबार, अनाप-शनाप दौलत, लेकिन इकलौता बेटा दिहाड़ी पर काम करने को मजबूर। ये जानकर हैरानी होती है, लेकिन सच है। दरअसल, अरबपति पिता के जवान बेटे के हालात नसीब की वजह से ऐसे नहीं, बल्कि जानबूझकर ऐसे बनाए गए
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक गुजरात के सूरत महानगर के हीरा कारोबारी ने ऐशो आराम की जिंदगी में पले बढ़े अपने इकलौते बेटे को जिंदगी की असलियत से वाकिफ कराने के लिए ऐसा फैसला लिया।
हीरा कारोबारी का 21 वर्षीय बेटा द्रव्य ढोलकिया अमेरिका से एमबीए की पढ़ाई कर रहा था । वह छुट्टियों में घर आया तो उसके पिता ने उसे आम आदमी की जिंदगी का अनुभव लेने के लिए कहा और उसे तीन जोड़ी कपड़ों और सात हजार रुपयों के साथ कोची जाने के लिए कहा।
द्रव्य से उसके पिता ने यह भी हिदायत दी कि पैसे तभी खर्च करे जब इमरजेंसी हो।
पिता ने रखी तीन ऐसी शर्तें की जान निकल जाए
पिता ने रखी तीन ऐसी शर्तें की जान निकल जाए
लड़के के पिता सवजी ढोलकिया की मानें तो उन्होंने उसे तीन शर्तों के साथ घर से रवाना किया। पहली शर्त यह कि उसे खुद कमाकर महीने भर अपना काम चलाना है, और एक जगह पर हफ्ते भर से ज्यादा काम नहीं करना है।
दूसरी शर्त यह कि मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करना है। तीसरी यह कि जो सात हजार रुपए घर से मिले, उनका इस्तेमाल नहीं करना है। इन सभी शर्तों का मानते हुए शर्त यह भी है कि लड़का कहीं पर भी अपने पिता की पहचान का फायदा नहीं उठाएगा।
लड़के के पिता सूरत में हरे कृष्णा डायमंड एक्सपोर्ट्स के मालिक हैं। उन्होंने बताया कि वह चाहते हैं कि उनका लड़का जीवन के उतार-चढ़ाव, कड़वी हकीकत को जाने, वह जाने कि एक आम आदमी या मजदूर को अपना पेट पालने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है।
इससे पहले ढोलकिया अपने कर्मचारियों को उपहार में कारें देने के कारण सुर्खियों में आए थे, अब इकलौते बेटे के लिए किए गए फैसले के कारण खबरों में हैं।
बेकरी और जूते की दुकान तक में किया काम
बेकरी और जूते की दुकान तक में किया काम
उधर हीरा कारोबारी के लड़के द्रव्य ढोलकिया ने तय किया कि वह ऐसी जगह काम की तलाश में जाएगा जहां की भाषा भी वह नहीं जानता हो। ढोलकिया की मानें तो उनका बेटा इसीलिए कोची गया, जहां मलयालम बोली जाती है, जिसे वह समझता नहीं है और हिंदी वहां आमतौर पर बोली नहीं जाती है।
द्रव्य की मानें तो पांच दिनों तक उसे कोई काम नहीं मिला, वह जहां भी गया वहां से भगा दिया गया। उसने खुद को 12वीं पास गुजरात के गरीब परिवार का रहने वाला बताया था।
आखिरकार द्रव्य को पहली नौकरी चेरानेल्लूर स्थित एक बेकरी में मिली। उसके बाद उसने एक कॉल सेंटर में काम किया, एक जूते की दुकान में भी नौकरी की, यहां तक की मैकडॉनाल्ड्स के रेस्टोरेंट में भी काम किया।
'40 रुपए की थाली के लिए सोचना पड़ता था'
'40 रुपए की थाली के लिए सोचना पड़ता था'
इन सभी नौकरियों से उसने करीब 4000 रुपए कमाए। द्रव्य ने बताया कि उसे कभी पैसों की चिंता नहीं हुई और यहां उसे 40 रुपए के खाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी। उसने बताया कि इसके अलावा लॉज में रुकने के लिए उसे 250 रुपए रोज बचाने थे। आखिर जिंदगी की संघर्ष भरी इस हकीकत का सामना करने के बाद द्रव्य मंगलवार को वापस सूरत स्थित अपने घर पहुंच गया।
फाइनेंस प्रोफेशनल श्रीजीत के ने द्रव्य को उसके घर पहुंचाया। श्रीजीत बताते हैं कि जब उन्होंने द्रव्य को बेकरी में देखा था तभी उन्होंने उसके अंदर कुछ खास नोटिस किया था।
श्रीजीत के मुताबिक उनके सहकर्मियों ने द्रव्य को नौकरी पर रखने के बारे में चेतावनी दी थी, इसलिए उन्होंने उसे नजरअंदाज किया। लेकिन मंगलवार को द्रव्य की कंपनी के सीईओ का फोन आया और फोन पर द्रव्य की असली कहानी बताई तो श्रीजीत हक्के-बक्के रह गए और द्रव्य को उसके घर पहुंचा दिया।
-साभार-अमर उजाला
-साभार-अमर उजाला
No comments:
Post a Comment