मातृ देवो भव: पितृ देवो भव:!
शास्त्रों में कहा है, मातृ देवो भव: पितृ देवो भव:! अर्थात माता-पिता देवतुल्य हैं। लोग पुण्य कमाने के लिए तीरथ करते हैं, देवताओं को पूजने मंदिर जाते हैं लेकिन घर में मौजूद जीते-जागते देवताओं को देख नही पाते हैं।
आज ग्लोबलाइज़ेशन के युग में ये बातें धूमिल हो रही हैं और घर को मात्र चारदीवारी ही समझ लिया गया है। उन दीवारों को हम खूब सजाते हैं, सोफा-पलंग बिछाते हैं, महंगे उपकरणों से सजाते हैं लेकिन घर को मंदिर एवं घर के बुजुर्गों को भगवान नही मान पाते। सारा जहां जिसमे समा जाए, वो मां है। 'मां' कहते और सुनते ही किसी के भी चेहरे पर प्यार भरी मुस्कान आ जाती है। पिता का नाम लेने से ही सुकून सा मिल जाता है क्योंकि हम जानते हैं कि वो पास हैं तो परेशानियां कभी पास नही आएगी। मां की शिक्षा से हम संस्कार और पिता से जीवन के नैतिक मूल्यों को सीखते हैं, जिसकी वजह से समाज मे हमारे व्यक्तित्व को पहचान मिलती है।
इन्ही उच्च भावनाओं से ओतप्रोतपरम पूज्य आचार्यश्रीमद विजय रत्नचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. एवं गुरुवर्या गुणदक्षाश्रीजी म.सा. की प्रेरणा व आशीर्वाद से संचालित ऋषिदत्ता जयणा मंडल-गोरेगांव द्वारा '"मातृ-पितृ वंदना" चतुर्थ प्रतियोगिता का आयोजन 16 जून 2020 को किया गया, जिसमे सभी ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। प्रतियोगिता के नियमानुसार प्रथम वीणाजी कोठारी, द्वितीय पिंकीजी शाह, तृतीय रक्षाजी पारेख व रिद्धिजी राठौड़ को विजेता घोषित कर पुरस्कृत किया गया, जिसका चयन निर्णायक ज्योतिजी मुणोत ने किया। इससे पूर्व मंडल द्वारा प्रथम गवली, द्वितीय प्रभु का विरह, तृतीय स्तवन एवं चतुर्थ मातृ-पितृ वंदना प्रतियोगिता का सफल आयोजन किया गया है और आगे भी इसी प्रकार से शासन प्रभावक प्रतियोगिता कर धर्म की प्रभावना करने का उत्कृष्ट भाव है।
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